प्रविष्टि-4
औद्योगिक क्रांति
औद्योगिक
क्रांति एक सार्वभौंम घटना है। यह क्रांति कहीं पहले हुई, कहीं यह देर से पहुंची। पश्चिम के रिनेसां जैसी घटनाओं ने इसकी
वैचारिक जमीन तैयार की। सामान्यत: माना जाता है कि कृषि युग से औद्योगिक या वृहद स्तरीय
यंत्रयुग में प्रवेश के साथ इस क्रांति का आरंभ होता है। समाज हस्त-उद्योग से
मशीनीकृत उत्पादन अवस्था में पहुंचता है। हस्तशिल्प (मिट्टी के बर्तन, घरेलू उद्योग की वस्तुएं, बुने
कपड़े, खिलौने, दस्तकारी
आदि) का स्थान मशीनी माल (लोहा, बांबा, पीतल, इस्पात आदि की वस्तुएं, कोयला
एवं ताप चालित वस्तुएं, जटिल तकनीक, कपड़े की
मिल, कारखाने आदि) ले लेते हैं। आम धारणा है कि 18वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड से औद्योगिक क्रांति की
शुरुआत होती है। इसका प्रथम चरण मूलत: 1760 से 1830 तक ब्रिटेन तक सीमित रहता है। इसके बाद यूरोप के अन्य भाग, फ्रांस, बेल्जीयम जैसे देशों तक पहुँचता है। इसी शताब्दी
में उत्तरी अमेरिका और जापान में भी इस क्रांति का विस्फोट होता है। कालांतर में
इन देशों की औद्योगिक उपलब्धि ब्रिटेन को पीछे छोड़ देती है। 20वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का ऐतिहासिक
विस्तार होता है। सोवियत रूस, पूर्वी यूरोपीय देश और एशिया के दो बड़े
राष्ट्रों-भारत एवं चीन- में भी उद्योगीकरण के माध्यम से क्रांति होती है। आज 21वीं शताब्दी में शायद ही कोई ऐसा राष्ट्र- राज्य
बचा हो, जहां इसका प्रभाव न दिखाई देता हो, उद्योगीकरण की प्रक्रिया न चल रही हो।
औद्योगिक
क्रांति कई चरणों में हुई है। प्रथम चरण में, वाष्प
इंजन के आविष्कार ने इसमें अपना ऐतिहासिक योगदान दिया। 1698 में थोमस सेवरी ने एक आदिम किस्म के वाष्प इंजन का पेटेंट कराया था, जिसका अत्यंत सीमित प्रयोग था। इसके बाद 1712 में थोमस न्यूकोमेन ने इसे और अधिक विकसित किया।
इस क्षेत्र में इतिहास निर्माता का श्रेय जेम्सवाट को दिया जाता है। वाट ने 1763 में वाष्प इंजन में
क्रांतिकारी परिवर्तन कर इसकी व्यापारिक एवं औद्योगिक उपयोगिता का विस्तार कर
दिया। वाष्प इंजन का अगला चरण था वाष्प इंजनचालित बोट। 1807 में अमेरिका की हडसन नदी में
सफलतापूर्वक वाष्प बोट उतारा गया, जिसके
सूत्रधार थे रोबर्ट फलसेन। जहां वाष्प शक्ति ने औद्योगिक क्रांति को आगे बढ़ाया, वहीं कपड़ा मिलों के आगमन ने इसमें नया आयाम जोड़ा। धागा बनाने की मशीन, कोक से पिघला लोहा जैसे प्रयोगों को ‘महान एवं असाधारण’, ‘अनुमान की क्षमता से बाहर’ आदि कहा गया। वाष्प इंजन के परिणामों को देखकर दूरद्रष्टाओं का मत था, 'इन आविष्कारों से क्रांति जन्म ले रही है'। 1738 में लेविस पॉल ने पहली ‘स्पीनिंग मशीन’ का पेटेंट कराया। 1740 तक लंदन में ऐसी कई मशीनें हो गर्इं। 1770 में जेम्स हरग्रेवेस ने भी
तंतु उत्पादन मशीन का पेटेंट कराया। इसके बाद सिलसिला चल पड़ा, 1975 और 1813 के बीच इस उद्योग में नए- नए आयाम जुड़ गए।
हैंडलूम मशीनों और क्रूड पावर लूम मशीनों का चलन बढ़ा। 19वीं शताब्दी के प्रथम चरण तक ब्रिटेन में करीब एक
लाख पावर लूम काम करने लगे थे। इसी के साथ अमेरिका में 1793 में कपास-ओटन की मशीन (कॉटन जिन) का आविष्कार
हुआ। इसके जन्मदाता थे इली व्हिटने। आम धारणा है कि वस्त्र उद्योग में क्रांति का
सेहरा किसी एक व्यक्ति को नहीं बांधा जा सकता, बल्कि छोटे-छोटे कारीगरों, दस्तकारों, बढ़इयों, घड़ी साजों, करघा
निर्माताओं और शिक्षित प्रयोगकर्ताओं ने इसे जन्म दिया। फिर भी माना गया है कि
पश्चिमी देश ही औद्योगिक क्रांति के सूत्रधार थे।
इसी
प्रकार लौह औद्योगिक क्रांति हुई, क्योंकि वाष्प इंजन और वस्त्र उद्योग, दोनों ही लोहे की निरंतर आपूर्ति पर निर्भर थे। 18वीं शताब्दी के शुरू में ज्यादातर मशीनों के
निर्माण में उम्दा लकड़ी का इस्तेमाल होता था। वन-कटाई होती थी। इसके नकारात्मक
प्रभाव सामने आने लगे थे। अंत में लोगों का ध्यान लौह-प्रयोग की तरफ गया। 18वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में कोक से लोहे को
पिघलाने की तकनीक आविष्कृत हो गई। 1750-76के बीच इस तकनीक के विकास के साथ-साथ विस्तार हुआ और 1856 के आते-आते 'सस्ता इस्पात' बाजार में आ गया। इसके बाद यह उद्योग चल पड़ा, बड़ी मात्रा में वाष्प इंजन, औजार और
विभिन्न कल-पुर्जे बनने लगे। अमेरिका इसमें पीछे नहीं था। लौह उद्योग के
क्रांतिकारी विकास एवं विस्तार के कारण ही रेल, सड़क और
जल परिवहनों का जाल फैला, भारत जैसे उपनिवेशों में भी ये शुरुआतें हुर्इं। 19वीं शताब्दी के मध्य में भारत में मुंबई-थाने के
बीच रेल पटरी बिछाई गई। उपर्युक्त उद्योगों के अलावा हजारों छोटे-बड़े उद्योग--जहाज निर्माण, रेल
पटरी निर्माण, इंजन एवं डिब्बे के निर्माण, शीशा उद्योग, रसायन उद्योग, साबनु
उत्पादन, टरबाइन एवं बॉइलर उत्पादन, टकसाल, स्वर्ण-रजत परिष्करण, आभूषण निर्माण, जूट उद्योग, शस्त्र निर्माण आदि अस्तित्व में आए।
पश्चिम
के साम्राज्यवादी देशों-बिटेन, फ्रांस, इटली, स्पेन पुर्तगाल, हालैण्ड के अफ्रीका, एशिया
और अमेरिकी महादेशों में अपने-अपने उपनिवेश थे। इसलिए यूरोप में हुई औद्योगिक
क्रांति के कारण इन्हें गुलाम देशों में आयात-निर्माता के बड़े बाजार भी आसानी से मिल
गए।
भारत
में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था। इसलिए ब्रिटेन में हुई औद्योगिक क्रांति का प्रभाव
औपनिवेशिक भारत पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ना अपरिहार्य था। रेल, सड़कों, पुलों, कपड़ा
मिलों, कारखानों, छापाखानों, अखबारों आदि का बड़े पैमाने पर जन्म लेना स्वाभाविक परिघटनाएं थी।
बंबई कलकत्ता, मद्रास, अहमदाबाद, कानपुर, सूरत जैसे नगरों में बहुतस्तरीय उद्योगीकरण हुआ। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से 7 वर्ष पहले 1850 में सर्वप्रथम कपड़ा और जूट
मिलें अस्तित्व में आर्इं। 1880 तक इस क्षेत्र में कुछ प्रगति हुई। कुछ
मिल-कारखानों के मालिक भारतीय पूंजीपति भी थे। भारत से चीन और जापान को वस्त्र और
दूसरी वस्तुएं निर्यात की जाती थीं।
भारत
के औद्योगिक विकास पर व्यापक साम्राज्यवादी नियंत्रण था। इस पर दोहरी मार थी।
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति की सुविधाओं के कारण संचार, यातायात, पूंजी और औपनिवेशिक शासन के बल पर विदेशी शासक भारत से
सस्ती दर पर कच्चा और परिष्कृत माल इंग्लैंड भेजा करते थे, वहीं ऊंची दरों पर अपना औद्योगिक माल भारत पर थोपा करते थे। 19वीं शताब्दी में भारतीय उद्योग के पितामह दादाभाई
नौरोजी ने इस बाबत अंग्रेजों की भारत के प्रति भेदभावपूर्ण नीति की कठोर आलोचना
अपने भाषणों एवं लेखों (‘भारत की
आवश्यकताएं और साधन', ‘भारत की गरीबी' आदि)
में की थी। इतना ही नहीं, तत्कालीन भारत सचिव जार्ज हैमिलटन ने भी स्वीकार
किया, “यदि यह सिद्ध किया जा सके कि अंग्रेजी शान काल में
भारत भौतिक संपन्नता की दृष्टि से पहले की तुलना में और अधिक पिछड़ गया है, तो इसे मैं आत्मनिंदा मानने को एकदम तैयार हूँ और स्वीकार करता हूँ
कि इस स्थिति में हमें भारत को अपने नियंत्रण में रखने का कोई अधिकार नहीं है।'’
यह
उद्धरण इस बात का सुबूत है कि भारत हस्त उद्योग और कच्चा व परिष्कृत माल उत्पादन
के मामले में पश्चिम से पिछड़ा नहीं था। औद्योगिक क्रांति की जमीन यहां पहले से
मौजूद थी। चीन और जापान के संबंध में भी यही कहा जाता है।
चीन में 1860 में कपास की मिल लगाने की
कोशिश की गई थी, लेकिन 1880 में यह सफल हुई। शंघाई में करीब 250 कारखाने थे। जापान से पराजित
होने के बाद चीन में उद्योगीकरण की रफ्तार धीमी पड़ी, लेकिन विजेता पड़ोसी देश जापान में इसकी गति तेज हुई। जापान में
उद्योगीकरण के साथ-साथ व्यापारिक एवं वित्तीय सांस्थानिक गतिविधियां भी अस्तित्व
में आर्इं। यह माना जाता है कि दो विश्व युद्धों के कारण पूर्वी देशों भारत, चीन, जापान आदि में अभूतपूर्व उद्योगीकरण दर्ज हुआ।
औद्योगिक
क्रांति के बहुआयामी प्रभाव इतिहास में दर्ज हुए हैं। इसने नई उत्पादन पद्धति एवं
नए उत्पादन साधनों को जन्म दिया। 19वीं शताब्दी के युगद्रष्टा कार्ल मार्क्स का
ऐतिहासिक निचोड़ है कि जब नई उत्पादन व्यवस्था अस्तित्व में आती है, तो इसके साथ ही नए उत्पादन संबंधों का जन्म भी होता है। औद्योगिक
क्रांति ने यूरोप की मध्ययुगीन सामंती व्यवस्था का अंत किया। इसके स्थान पर नई
पूंजीवादी एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था का सूत्रपात हुआ। फ्रांस में क्रांति हुई, राजशाही का अंत हुआ। उपनिवेशित अमेरिका में स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा।
भारत में भी नई राजनीतिक चेतना पैदा हुई, जनता
आंदोलित हुई। यूरोप में बंधुत्व, समानता, न्याय, स्वतंत्रता, मुक्त अर्थव्यवस्था और साम्यवाद आदि को लेकर
विमर्शों का विस्फोट हुआ। रूस में लेनिन के नेतृत्व में साम्यवादी क्रांति हुई, नए राष्ट्र राज्यों का जन्म हुआ। इस युगांतकारी घटनाओं की पृष्ठभूमि
में औद्योगिक क्रांति की प्रत्यक्ष एवं परोक्ष भूमिका मानी जाती है। ‘मौन क्रांति’ से भी परिभाषित किया गया है। इतिहासकार ‘टेामनबी’ के मत में औद्योगिक क्रांति एक तूफानी भोर की पूर्व शांत संध्या है।
एडम स्मिथ ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘राष्ट्रों की संपत्ति’ में वाष्प इंजन और पॉवर लूम जैसे आविष्कारों को नई व्यवस्था के जनक
के रूप में देखा था। सामाजिक चिंतक थोमस आर. माल्थस, अर्थशास्त्री
डेविड रिकार्डो ने भी औद्योगिक क्रांति, उद्योगीकरण
और औद्योगिकवाद से संबंधित विभिन्न पहलुओं शहरीकरण, विस्थापन, श्रमिक वर्ग का उदय बेरोजगारी, वेतन
सीमा, जनसंख्या विस्फोट आदि विषयों पर चिंतन किया। यह सच भी
है कि जहां इस क्रांति से मानवता को असीम लाभ पहुंचे हैं, वहीं इसके दुष्परिणाम भी सामने आए हैं। डिकन्स, चार्ल्स लैंब जैसे 19वी शताब्दी के कथाकारों की रचनाओं में इसकी गवाही
है।
औद्योगिक
क्रांति को विश्वविख्यात एलिवन टॉफलर ने ‘दूसरी लहर’ से
परिभाषित किया है। यह क्रांति अब तक पांच चरणों से गुजर चुकी है, लेकिन आज भी इसकी यात्रा जारी है। आज यह इलैक्ट्रोनिक, स्वचालितीकरण, रोबोट, साइबर
और अंतरिक्ष युग में प्रवेश कर चुकी है। इसका पटाक्षेप कहां होगा, यह कयास का विषय है।
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