प्रविष्टि-5
मनुवाद
मनुवाद उस सामाजिक
व्यवहार को कहते हैं, जिसकी
व्यवस्था मनुस्मृति में दी गई है। दूसरे शब्दों में मनुवाद मनुस्मृति द्वारा
स्थापित हिंदू समाज व्यवस्था का नाम है। हिंदू समाज में मनुस्मृति की मान्यता
हिंदू विधि के रूप में की जाती है। इस दृष्टि से मनु की सम्पूर्ण संहिता मनुवाद
है। किन्तु वर्तमान विमर्श में मनुवाद का प्रयोग दलित-पिछड़ी जातियों, बौद्धों और मुस्लिमों के द्वारा असमानता के विरोध के अर्थ में किया जाता
है। इसका कारण मनु का वह समाजशास्त्र है, जो विभिन्न वर्णों
और जातियों के बीच समान सामाजिक व्यवहार का निषेध करता है। मनु की आस्था
वर्णव्यवस्था और जातिभेद में होने के कारण उससे पीड़ित वंचित जातियों के लोग
लोकतंत्र में मनुवाद को अपने सामाजिक विकास में बाधक मानते हैं। इसलिए इन वर्गों
द्वारा भारतीय राजनीति में सामाजिक समानता के विरोध के रूप में ‘मनुवाद' शब्द का प्रयोग आरंभ हुआ।
भारतीय राजनीति में मनुवाद शब्द कब प्रचलित हुआ? इसका
उत्तर ठीक-ठीक नहीं दिया जा सकता। परंतु इस शब्द का प्रयोग पहली दफा नब्बे के दशक
में काशीराम के नेतृत्व में उभरे बहुजन आंदोलन में देखने को मिलता है। इससे पूर्व
सामाजिक असमानता के विरुद्ध जो शब्द भारतीय राजनीति में सर्वाधिक चर्चित रहा है,
वह ब्राह्मणवाद है। डा. आंबेडकर की रचनाओं में स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व भाव के विरोध की चेतना के अर्थ में ब्राह्मणवाद शब्द
आया है। मनुवाद शब्द उनकी रचनाओं में कहीं नहीं मिलता। किन्तु 14 अप्रैल 1984 को अस्तित्व में आई बहुजन समाज पार्टी
के राजनीतिक साहित्य में "हजारों वर्षों से देश में मनुवादी व्यवस्था से
पीड़ित लोग'' का उल्लेख भारतीय राजनीति में ‘मनुवाद' शब्द के प्रथम प्रयोग का दृष्टान्त है। इस
प्रकार मनुवाद शब्द बहुजन समाज पार्टी का ईजाद किया हुआ शब्द है। इस शब्द को उसके
नेता जातिवादी हिंदुओं के लिए इस्तेमाल करते हैं। बहुजन समाज पार्टी के नेताओं ने
उन लोगों को, जो मनुस्मृति के विधान में विश्वास करते हैं और
जन्मना जातिभेद मानते हैं, मनुवादी कहना शुरू किया था।
देखते-देखते यह शब्द इतना प्रचलित हो गया कि इसका खुलकर प्रयोग होने लगा।
ब्राह्मणवाद के समानार्थी शब्द ‘मनुवाद' ने दलित वर्गों को अस्मिता की राजनीति के अंतर्गत ध्रुवीकृत करने में अहम
भूमिका निभाई है। किन्तु इसके विपरीत भारतीय राजनीति में उसके विरोध हिंदू उन्माद
का भी उभार हुआ है। इसी की प्रतिक्रिया में वर्ष 2000 में
उग्र हिंदुत्ववादी राजनीतिक दल "क्रांतिकारी मनुवादी मोर्चा'' का भी गठन हुआ, जिसके नेता आर. के. भारद्वाज ने
उत्तर प्रदेश में 2000 में विधान सभा का चुनाव लड़ा था।
"क्रांतिकारी मनुवादी मोर्चा'' मनुवाद का समर्थक और
आरक्षण का विरोधी है।
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