Friday, January 30, 2015



कोश निर्माण में हिस्सेदारी
जनवरी 2015 : पहली किस्त

प्रविष्टि - संवाद 
खंड-1


प्रविष्टि-1
नल-दमयंती

     नल-दमयंती की प्रेम कथा प्रसिद्ध है। महाभारत के वन पर्व में एक तपस्वी वृहदश्व यह कथा जुए में हार से दुखी युधिष्ठिर को सुनाते हैं। इसका अर्थ है यह कथा महाभारत से पहले लोकजीवन में मौजूद थी।
      नल को जुए का शौक था। छोटे भाई से अपना राजपाट सबकुछ हार जाने के बाद उसे अपनी प्राणप्रिया दमयंती के साथ जंगल में दुख-कष्ट सहने के लिए निकल जाना पड़ा। नल और दमयंती दोनों की नैसर्गिक सुंदरता, उनका प्रेम, वैवाहिक मिलन, विपदाएं, विछोह और पुनर्मिलन कला-साहित्य के विषय बनते रहे हैं। राजा रवि वर्मा ने दमयंती के अद्भुत सौंदर्य और नल की कथा सुनाते हंस को अपने चित्र में अमर कर दिया। कथकली (केरल) और यात्रा नाटक (बंगाल) में नल-दमयंती की लंबी कथा लोकप्रिय रही है।  कथा दिखाती है कि प्रेम जितना कठिन है, जितना बाधाओें और रहस्यों से भरा है, उतना ही अमिट भी है।
      नल निषाध के राजा वीरसेन का अति सुंदर पुत्र है। वह घुड़सवारी और पाक कला में निपुण है। दमयंती विदर्भ के राजा भीम की कन्या है। नल ने दमयंती के रूप की प्रशंसा सुनी। एक सुनहरा हंस नल की प्रशंसा करके दमयंती के मन में नल के प्रति आकर्षण और प्रेम पैदा करता है। दमयंती के लिए स्वयंवर होता है। इसमें जाते हुए नल को रास्ते में इंद्र, अग्नि, वरुण और यम ये चार देवतागण मिलते हैं। वे भी स्वयंवर में दमयंती के लिए जा रहे थे। देवगण नल को ही अपना दूत बनाकर दमयंती के पास भेजते हैं कि वह खुद जाकर दमयंती को समझाए कि वह स्वंयवर में इन चार देवों में से किसी को अपना वर चुने। नल के कहने पर भी दमयंती राजी नहीं होती। इसलिए देवगण नल के वेश में स्वयंवर में आते हैं। दमयंती ईश्वर से प्रार्थना करती है कि उसने मन से नल को ही पति के रूप में स्वीकार किया है। अत: उसे असली नल ही मिले। फलत: देवगणों के देवचिह्न दिख जाते हैं। दमयंती नल को चुन लेती है और उसका विवाह हो जाता है। देवतागण आशीष देकर चले जाते हैं। इसे देवलोक पर मनुष्य लोक की श्रेष्ठता का प्रतिपादन भी कहा जा सकता है। नल-दमयंती अपना जीवन सुखपूर्वक बिताने लगते हैं।
      कलि और द्वापर को उनका सुख बर्दाश्त नहीं होता। नल जितना सुंदर था, उतना ही स्वच्छ और नियम-कायदों वाला भी था। एक दिन शौच क्रिया करने के बाद वह पैर धोना भूल गया, बस इस भूल की राह से कलि उसमें प्रवेश कर गया। नल ने कलि के प्रभाव में आकर एक दिन अपने भाई छोटे पुष्कर के साथ जुआ खेला। वह हारता चला गया। उसने अपना राजपाट खो दिया, पर उसने दमयंती को दांव पर नहीं लगाया। नल-दमयंती अपनी संतान को सुरक्षित जगह भेजकर एक-एक कपड़े में जंगल की ओर निकल पड़े। वे भूख-प्यास से व्याकुल थे। नल ने भोजन के लिए अपने शरीर के कपड़े से उड़ते सुनहरे पक्षियों को जैसे ही पकड़ना चाहा, पक्षी वह कपड़ा लेकर उड़ गए। दोनों अब एक ही कपड़े में रह गए। कथा एक मार्मिक बिंदु पर पहुंचती है, जब नल एक रात बीच से कपड़ा आधा काटकर दमयंती को सोता छोड़ चुपचाप चल देता है, ताकि दमयंती को साथ रहकर दुख भोगना न पड़े। वह सुरक्षित अपने पिता के घर चली जाए। दमयंती जगने पर नल को न पाकर बेहाल हो जाती है। वह कई विपत्तियों और अपमानों से गुजरते हुए अंतत: अपने पिता के घर पहुंचती है।
      इधर नल ने जंगल में शापग्रस्त कारकोटक सांप को मुक्त किया, जो अपनी जगह से हिल-डुल नहीं सकता था और जंगल में आग लग चुकी थी। सुंदर नल का रूप बदल जाए और उसे कोई पहचान न सके, इसलिए कारकोटक ने नल के भले के लिए उसके शरीर में विष का आंशिक असर पैदा कर दिया। सुंदर नल का शरीर विकृत हो गया, पर कलि भी पीड़ित होकर विष वमन करता हुआ अंतत: नल की देह से बाहर आ गया। नल वेश बदल कर अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण के यहां बाहुका सारथी बन कर रहने लगा। वह दमयंती के वियोग से पीड़ित था। दमयंती के पिता ने नल का संधान न पाकर दमयंती के लिए फिर स्वयंवर रचा। अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण सारथी नल को लेकर स्वयंवर में पहुंचे, पर वहां ऐसा कोई दृश्य न था। दमयंती समझ गई कि ऋतुपर्ण का सारथी ही नल है। वह जैसे किसी धुए के भीतर आग जैसा था। सारथी बाहुका बने नल को सामने पाकर दमयंती रोती हुई सवाल करती है, "क्या तुमने दुनिया में कोई आदमी देखा है जो सोते समय अपनी प्रिय पत्नी को भूखा-प्यासा छोड़कर चला गया हो, निर्जन में बिल्कुल अकेला करके? क्या मैंने कोई दुर्व्यवहार किया था? मैंने देवगणों को साक्षी रखकर विवाह किया था। मेरे बच्चे हैं। अग्नि के सामने के वे वादे क्या हुए?'' महाभारत में ऐसे सवाल हैं, जो स्त्री की आवाज को मुखर रखते हैं। उसी समय सारथी बना नल कारकोटक का दिया हुआ दिव्य वस्त्र पहनता है और नल के असली सुंदर रूप में आ जाता है। नल और दमयंती का सुखद पुनर्मिलन होता है।
      यह सौंदर्य और प्रेम की एकता है। नल खाली घट देखता है और वह जल से भर जाता है (वरुण), सूखा काठ देखता है और वह अग्नि से प्रज्वलित हो उठता है (अग्नि) पुष्प से स्पर्श होता है और सुगंध छा जाती है (यम)। उसे कर्म यज्ञ का फल मिल जाता है (इंद्र)। ये प्रकृति के ही आशीष हैं। नल सेना तैयार करके अपने पुराने निषाध राज्य में जाता है और अपने भाई पुष्कर को जुए के लिए ललकारता है। वह जुए में जीतकर राज्य और राज सुख पुन: पा जाता है, पर वह अपने भाई की हत्या नहीं करता। महाभारत में भाई भाई की हत्या करता है। देखा जाए तो महाभारत की लघु ललित कथाओं में गहन अर्थ है। नल-दमयंती की कथा सौंदर्य, प्रेम के लिए पीड़ा, जीवन संघर्ष और साहस का अनोखा दृष्टांत है। अबुल फैज ने फारसी में किस्से नल-दमयंती के लिखा है और महर्षि अरविंद ने द टेल ऑफ नल लिखा है। नल-दमयंती का प्रेम सुख-दु:ख और पुनर्मिलन की एक अमर कथा है।


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